7/6/12

फिल्म रिव्यूः बोल बच्चन

फर्ज कीजिए कि आप अपने पसंदीदा रेस्तरां में गए और वहां अपनी फेवरेट डिश ऑर्डर की। वेटर बड़े अदब से वह डिश लाया, जिसे चखते ही आपको शेफ पर गुस्सा आया। आप चिल्लाए, यार ये आज तुमने क्या बनाया है? इस डिश में वह पहले वाला टेस्ट क्यों नहीं है? शेफ कहे कि सर, मैंने इसमें नया प्रयोग किया है, जो आपके गले न उतरे और आप असंतुष्ट हो झुंझला कर किसी दूसरे रेस्तरां में चले जाएं।
रोहित शेट्टी की फिल्म ‘बोल बच्चन’ के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। एंटरटेनमेंट के तमगों से नवाजी गई उनकी पिछली तमाम फिल्मों के बाद ‘बोल बच्चन’ देखने पर यही अहसास होता है कि रोहित अब की बार यह तुमने क्या किया है। इस कॉमेडी फिल्म से कॉमेडी ऐसे गायब है, जैसे बटर स्लाइस से मक्खन। अब कम बटर लगी रूखी ब्रेड से कितनी देर तक गुजारा चलता।
वह तो शुक्र है कि बीच-बीच में असरानी, अर्चना पूरण सिंह और कृष्णा ने संभाले रखा, वर्ना अजय देवगन का पृथ्वी सिंह जैसा किरदार इतना लाउड है कि उसके आगे कोई दो मिनट भी नहीं टिक सकता। यही वजह है कि अभिषेक बच्चन डबल एक्ट में भी बेचारे से नजर आते हैं।
‘बोल बच्चान’ 1979 में आई ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘गोलमाल’ से प्रेरित है। हालांकि रोहित इसे ‘गोलमाल ’का रीमेक कह रहे हैं। यह फिल्म रीमेक इसलिए भी नहीं कही जा सकती, क्योंकि उन्होंने इसकी कहानी और पात्रों के कान अपनी मर्जी से इतने ज्यादा उमेठ दिए हैं कि ‘गोलमाल’ की वास्तविकता खत्म हो गई है।
फिल्म की कहानी अब्बास अली (अभिषेक बच्चन) और उसकी बहन सानिया (असिन) के रणकपुर गांव जाने से शुरु होती है, जहां उनके परिचित शास्त्री (असरानी) का बेटा रवि (कृष्णा) रहता है।
अब्बास को काम की तलाश है। एक दिन वह गांव के बरसों पुराने मंदिर का ताला तोड़ देता है। इस मुसीबत से बचने के लिए रवि अब्बास को अभिषेक बच्चन बना देता है और अभिषेक को पृथ्वी (अजय देवगन) के यहां नौकरी मिल जाती है। इसके बाद शुरू होता है एक के बाद एक झूठ बोलने का सिलसिला, जिसमें अभिषेक के साथ-साथ सानिया, रवि और शास्त्री भी शामिल हो जाते हैं।
अभिषेक की मां बन कर इस टीम में जोहरा (अर्चना पूरण सिंह) भी शामिल हो जाती है, जो पेशे से एक तवायफ है। सब गोलमाल ढंग से चल रहा होता है कि एक दिन पृथ्वी की बहन राधिका (प्राची देसाई) शहर से लौट आती है। इसी बीच पृथ्वी अभिषेक को मस्जिद में नमाज पढ़ते हुए देख लेता है। इस झूठ को छिपाने के लिए रवि फिर से अभिषेक को अब्बास बना देता है।
यानी अभिषेक का नकली भाई अब्बास बना देता है। पृथ्वी अब्बास को राधिका के डांस टीचर की नौकरी दे देता है। दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगती हैं और उनमें प्यार हो जाता है। यही प्यार उनका भांडा भी फोड़ देता है। इस अधपकी सी कहानी को रोहित शेट्टी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में पेश किया है। उनकी इस फिल्म में भी उन्हीं के स्टाइल का एक्शन है।
यानी जब हीरो गुंडों की पिटाई करता है तो खन्न से आवाज होती है, मानो गुंडे की कनपटी से रेजगारी गिर रही हो। एक हाथ से हीरो का दजर्नों गुंडों को पीटना, गाड़ियों की भाग-दौड़ और उठा-पटक सहित सब कुछ है।
रोहित की पिछली तमाम फिल्मों में ढेर सारे किरदार देखे गए हैं। उनके रोल बेशक छोटे होते हैं, लेकिन इससे कॉमेडी की वेरायटी बनी रहती है, जिसका अभाव ‘बोल बच्चन’ में दिखाई देता है। कृष्णा और अर्चना पूरण सिंह के वन लाइनर जोक्स का उन्होंने अच्छा इस्तेमाल किया है। कहीं-कहीं कॉमेडियन वीआईपी भी नजर आ जाते हैं तो लगता है कि आप कॉमेडी सर्कस का कोई एपिसोड देख रहे हैं।
फिल्म में अगर कहीं कोई रिलीफ मिलती है तो इन्हीं कलाकारों से मिलती है। लंबे समय से असफलता का मुंह देख रहे अभिषेक बच्चान ने कोशिश काफी की है कि वह फिल्म ‘दोस्ताना’ जैसा ह्यूमर क्रिएट कर सकें। इसके लिए उन्होंने पिछले कई पुराने आइटम नंबरों पर डांस भी किया है, लेकिन अजय देवगन के लाउड कैरेक्टर के आगे वह दब से जाते हैं।
उधर अजय देवगन को एक सिरफिरा इंसान दिखाया गया है, जो बात-बात में मुगदर उठाता और घूंसे जड़ता है, लेकिन वो इस रोल के कलफ से बाहर ही नहीं निकल पाए। यही वजह है कि इस बार वह एंटरटेन करते नहीं दिखते।
सनद रहे कि ऐसा ही रोल वह ‘गोलमाल 3’ में भी कर चुके हैं। असिन और प्राची के किरदार ऐसे हैं, जिन्हें कोई अन्य तारिका भी कर सकती थी। फिल्म का संगीत बांधे रखता है। विजुअली फिल्म काफी अच्छी है। कुल मिला कर कह सकते हैं कि फिल्म में रोहित का जादू नहीं है।
कलाकार: अजय देवगन, अभिषेक बच्चन, असिन, प्राची देसाई, कृष्णा, अर्चना पूरण सिंह और असरानी
निर्देशक: रोहित शेट्टी
निर्माता: अजय देवगन/श्री अष्टविनायक
संगीत: हिमेश रेशमिया, अजय-अतुल
कहानी: फरहाद यूनुस सेजवाल और साजिद
संवाद: फरहाद और साजिद

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